क्या लिखूँ
कुछ ख़्वाबो को आज लिखूँ
बीते कल का बयान लिखूँ
छूट गई जो गलियाँ सारी
उन गलियों के नाम लिखूँ
सरकती जा रही आहिस्ता
ज़िंदगी ,इसकी क्या चाल लिखूँ
फ़ना यादें हैं ,कश्मकश में , मैं
क्या फिर से इस बार लिखूँ
पढ़नेवाले वाले अगर मिलें कहीं
“सागरी” , क़िस्सा मैं हरबार लिखूँ
डा राजीव “सागरी”