क्या ये एक प्रवास था ?
आज फिर से लौट आये
हम जहां से थे चले ।
क्या ये एक प्रवास था
भाग्य से था जो मिला ?
लग रहा मुझको कुछ ऐसा
स्वप्न सा टूटा कोई
और फिर जीवन में जड़ता
सामने है आ खड़ी ।
कह रही मानों वो मुझसे
तज कहां तुम जाओगी ?
खोज लो कितने भी कानन
लौट फिर यहीं आओगी।
इस जगत में सार तो
बस है कुछ दिन का भरम ।
है यहां जड़ता ही निश्चित
और न कोई धरम ।