क्या यह महज संयोग था या कुछ और…. (4)
4. क्या यह महज संयोग था या कुछ और…?
हमारे रोजमर्रा के जीवन में कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाएँ घटती हैं, जो अजीबोगरीब और अविश्वसनीय लगती हैं। मेरे साथ भी कई बार ऐसी घटनाएँ घटी हैं, जो लगती अविश्वसनीय हैं, परंतु हैं एकदम सच्ची।
सामान्यतः मैं कभी-कभार ही अपनी मोटर साइकिल पर किसी अपरिचित व्यक्ति को लिफ्ट देता हूँ, परंतु कई बार ऐसा भी हुआ है कि किसी अदृश्य शक्ति के वशीभूत होकर मैंने अपरिचित लोगों को लिफ्ट दी और इस बहाने कुछ अच्छा कार्य करने की खूबसूरत यादें संजो लीं।
‘क्या यह महज संयोग था या कुछ और…?’ श्रृंखला में मैं ऐसी ही कुछ घटनाओं का जिक्र करूँगा, जब मेरे माध्यम से कुछ अच्छा काम हुआ और मैंने खूबसूरत यादें संभाल ली।
यह बात सन् 2007 की है। मार्च महीने का अंतिम सप्ताह रहा होगा। तब मैं ओ.पी. जिंदल स्कूल, रायगढ़ में हिन्दी शिक्षक हुआ करता था। स्कूल का समय सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक होता था। हमें सुबह 6.55 तक उपस्थित पंजी में हस्ताक्षर करना पड़ता था। स्कूल तो खुल गया था, परंतु सिर्फ शिक्षकों के लिए, बच्चे 1 अप्रैल से आने वाले थे। इस कारण अभी स्कूल बस की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। हमें अपने वाहन से ही स्कूल पहुँचना था।
उस दिन भी मैं अपने गृहग्राम नेतनांगर से सुबह 5 बजे ही निकल पड़ा था। सामान्यतः मैं गीता भवन चौक से होते हुए ही स्कूल पहुँचता था, परंतु पता नहीं क्यों उस दिन कयाघाट पुल की ओर से निकल पड़ा। अभी मुख्य मार्ग से 100 मीटर भी अंदर नहीं गया था कि एक साँवला-सा 18-19 वर्षीय युवक को दौड़ते हुए देखा। जब करीब पहुंचा, तो उसने हाथ देकर मुझे रूकने का संकेत किया। पता नहीं क्यों मैं बिना रूके आगे बढ़ गया। लगभग एक डेढ़ किलोमीटर आगे जाने के बाद लगा, कि मुझे उस लड़के को लिफ्ट देनी थी। मोटर साइकिल स्वस्फूर्त यू-टर्न ले चुकी थी। लड़का अब भी बदहवास दौड़ रहा था। मैंने पुनः यू-टर्न लिया। बोला, “बैठ जाइए। आगे छोड़ दूँगा।”
पहले तो वह हिचका, फिर बैठ गया। थोड़ी देर बाद उसने बताया, “मैं साँकरा गाँव का रहने वाला हूँ। मेरे भैया-भाभी यहाँ पंजरी प्लांट मोहल्ले में किराए के मकान में रहते हैं। भैया की पोस्टिंग रायगढ़ में हैं। कल उनको अचानक भोपाल जाना पड़ा। भाभी घर में अकेली थीं। रात को दो बजे अचानक प्रसव पीड़ा शुरू होने से पड़ोसियों ने मिशन हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया है। रात में भैया ने फोन पर जैसे ही खबर की, मैं बरगढ़ से आने वाली बस से निकल गया हूँ। अभी कोई आटो या रिक्शा नहीं मिल सकता, इसलिए आपसे लिफ्ट माँग रहा था। पर आप… यूँ वापस…।”
मैंने उसकी पूरी बात सुनने के बाद उसे मिशन अस्पताल के गेट तक छोड़ दिया और समय पर स्कूल भी पहुंच गया।
दोपहर में जब मैं स्कूल से निकल रहा था, तो मेरे एक मुँहबोले मामाजी का फोन आया, “गुडन्यूज है भाँजा जी, मैं बाप बन गया हूँ और आप भैया। तुम्हारी मामी मिशन हॉस्पिटल में एडमिट है। फिलहाल मैं भोपाल में हूँ। कल सुबह रायगढ़ पहुँचूँगा। समय मिले तो एक राऊंड अस्पताल की मार लेना। बाकी पूरी राम कहानी कल आकर सुनाऊँगा।”
“जरूर मामाजी, फिलहाल तो बधाई हो।” मैंने कहा और मोबाइल कनेक्शन काट दिया।
मैं स्कूल से सीधे अस्पताल पहुँचा। रिसेप्शन में पता करते हुए जब वार्ड में पहुंचा, तो मामी जी के पास उसी लड़के को देखकर समझते देर नहीं लगी कि मेरा अनुमान एकदम सही है।
वह लड़का मुझे देखते ही हाथ जोड़कर आश्चर्य से बोला, “आप यहाँ ? भाभी जी यही भाई साहब हैं, जिनसे आज सुबह लिफ्ट लेकर मैं जल्दी अस्पताल पहुंच सका।”
मामी जी मुसकराते हुए बोलीं, “ये हमारे प्रदीप भाँचा जी हैं। आपके भैया के कॉलेज के जमाने के मित्र और मुँहबोले भाँजा भी।”
अगले दिन जब हमारे मुँहबोले मामाजी लौटे, तो उन्हें हमने पूरी बात बताई, तो वे बोले, “शायद हमने कुछ अच्छे काम किए होंगे भाँचा जी, जिस कारण ईश्वर ने हमारी मदद के लिए आपको उस रास्ते भेजा और वापस लौटकर लिफ्ट देने के लिए प्रेरित किया।”
खैर, कारण चाहे कुछ भी हो, आज भी उस पल को याद करके हमारा मन खुशी से झूम उठता है।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायगढ़, छत्तीसगढ़