क्या यही है ज़िन्दगी का सबब
यूँ तो सब अपनी ज़िंदगी जीते हैं
टुकड़ों टुकड़ों में
अपने ही सपने
अपने तक सीमित
क्या यही है ज़िंदगी का सबब
क्या यही है ज़िन्दगी का मकसद।
टुकड़े टुकड़े जमीन
टुकड़े टुकड़े हवा
टुकड़े टुकड़े आसमान
बस उतना ही
जितना हो मतलब
क्या यही है ज़िन्दगी का सबब
क्या यही है ज़िन्दगी का मकसद।
संकुचित हृदय
जकड़ी सी सांसें
अपने ही मकसद
अपनी है बातें
क्या यही है ज़िन्दगी का सबब
क्या यही है ज़िन्दगी का मकसद।
अपना ही सुख
अपनी ही चिंता
अपनी ही अभीप्सा
अपना ही दुख
अपनी ही भूख
क्या यही है ज़िन्दगी का सबब
क्या यही है ज़िन्दगी का मकसद।
भंगिमाओं में बंधा हर पल
नाटकीय मुस्कुराहट
नाटकीय हाव भाव
नाटकीय जीवन
यथार्थ से कोसों दूर
क्या यही है ज़िन्दगी का सबब
क्या यही है ज़िन्दगी का मकसद।
रोबोट सी दिनचर्या
मशीनों की तरह काम
नीरस सा जीवन
न कोई आराम
क्या यही है ज़िन्दगी का सबब
क्या यही है ज़िन्दगी का मक़सद।
अपनी ही शोहरत
अपनी है बातें
अपने से सुनना
अपनी आवाजें
क्या यही है ज़िन्दगी का सबब
क्या यही है ज़िन्दगी का मकसद।
विपिन