” क्या यही है विश्वास “
इस बरस मैं अठारह की हूई ही थी कि ,
तभी एक अंजाना सा रिश्ता आया ,
इस रिश्ते से थी मैं अनजान ।
तभी मेरा डगमगाया इमान ,
कैसे कहूं मैं उसे अपना ,
जिसके लिए मैंने कभी देखा नहीं था सपना ।
क्या यही है विश्वास ?
अजीब सी वो उलझन थी ,
हर रिश्ते से जोड़ने वो कड़ी थी ,
निर्भर था वो रिश्ता मेरे हां पर ,
लेकिन मैं बेबस खड़ी थी ।
क्या यही है विश्वास ?
अंत में मैंने किया वो फैसला ,
जिससे मेरी नई दुनिया शुरू होनी थी ,
सबका था प्यार और उस अंजाने का भी था थोड़ा सहयोग ,
तभी मैं आगे बढ़ चली थी ।
क्या यही है विश्वास ?
चोर था उस अंजाने के मन में ,
जिसको था सिर्फ मेरे तन और धन से प्यार ,
वो था बिल्कुल फर्जी बेईमान ,
हम थे सब इन बातों से अंजान ।
क्या यही है विश्वास ?
मामा जी ने किया इस अंजाने का जांच पड़ताल ,
पर कहीं ना मिला कोई सुराग ,
सभी को हो गया पूरा विश्वास ,
उस बेहरूपीए पर कोई कर ना पाया पलटवार ।
क्या यही है विश्वास ?
सबको था बस उस दिन का इंतज़ार ,
जिस दिन पूरे होने थे मेरे सोलह श्रृंगार ,
मेरे अंदर भी आयी एक नई बहार ,
मैंने भी कर लिया सब हंसकर स्वीकार ।
क्या यही है विश्वास ?
बीता कई महीनों का इंतज़ार ,
कुछ ही क्षण बाकी रह गए इस बार ,
मैंने भी सपने सजाए थे हजार ।
फिर हुआ हर एक सच का आभास ,
सोचा कर दूं पलटवार ,
लेकिन कई अपने भी थे इसके जिम्मेदार ,
और था पापा जी के खुशियों का भी सवाल ।
क्या यही है विश्वास ?
फिर हुआ कुछ ऐसा जिसका, किसी ने ना किया था विचार ,
बीच में फंसी थी मेरी नाईया , कैसे लगाती मैं इसे पार ।
तभी किसी ने दिया मुझे विचार ,
अगर मैं चुप रह गयी तो , जिंदगी हो जाएगी बेकार ।
क्या यही है विश्वास ?
फिर तो क्या कर दिया मैंने भी हड़ताल ,
सबको लगा मैंने नहीं किया सबके बातों का सम्मान ,
इसलिए मैं हो गयी बेकार ,
न रहा अब कोई मेरा आदर न ही सम्मान ।
क्या यही है विश्वास ?
✍️ ज्योति
(10 जनवरी 2018 – जब मैंने अपना 7 फरवरी 2018 को होने वाला विवाह तोड़ा था )
नई दिल्ली