क्या मैं..
क्या मैं यू ही घुट घुट कर जीता रहूँगा ,
क्या मैं दुनिया देखकर तरसता रहूंगा ।
जिंदगी मेरी क्या यू ही घुटन सी होगी ,
तरसती आँखे क्या तरसते ही सोगी ।
जिंदगी मेरी क्या सितम सी होगी ,
न जाने कोनसी य जतन परसेगी ।
हमने तो खुद को भी,
बुरा साबित कर दिया दुसरो के लिए ।
फिर भी न जाने क्यों य जिंदगी में,
क्या सितम पर सितम बरसेगी ।
मेरी आंखें कब तक यू ही बस यूं ही तरसेगी ,
क्या यू ही आँखों से नमी सी बरसेगी ।
न जाने कब खुली हवा से जतन बरसेंगी ,
न जाने कब खुली हवा से जतन बरसेंगी।।
राहुल गनवीर