क्या मैं थी
क्या मैं थी,और क्या हो गई हूं।
लगता है मुझे, कहीं खो गई हूं।
बहुत बदल गया , मुझको ये सफर।
अजनबी सा लगे,अपना ही घर।
ज़िंदगी दिखा गई,मुझे ऐसे रंग ढंग।
आज़िज होकर इससे, मैं हुई हूं तंग।
खुदा बदले बहुत ,दुआ हुई न कबूल।
तुमसे इश्क करना,मेरी फक्त थी भूल।
लौट आओ,राह तकते हैं नैना।
आंख बरसे और कटे न रैना।
सुरिंदर कौर