क्या मेरे बिना भी जिंदा रहे पा रहे हो तुम
उन्होंने मुझसे एक सवाल पूछा
मेरे बिना भी क्या जिंदा
रह पा रहे हो तुम
हमनें भी मुस्कुराते हुए
उनके दिए ज़ख्मो के दर्द को सिया
वो ताज्जुब हो गए
हमारे मुस्कुराते चेहरे को
ज़ख्म दिए थे उन्होंने इतने
हमें दुनिया से मिटाने को
हमने भी दर्द को अपने
भीतर ही छुपा लिया
वो देखते रहे गये
सिर अपना झुका लिया
सिर झुकाया जैसे उसने
मोती सारे बहा दिए
उस पगली ने भी अपने
दर्द सारे जता दिए
दर्द जता कर उस पगली ने
अपनी गलती को स्वीकार किया
वो बोली अनजाने में कैसा
मैंने अत्याचार किया
मैंने तो स्वार्थ की ख़ातिर
तुझको इंकार किया
और तुमने भी बिन बोले
ये सब स्वीकार किया
हमनें तो तेरी ख़ुशी की ख़ातिर
अपना बलिदान दिया
अपने सारे ज़ख्मो के दर्दो को
भीतर ही संहार किया
भूपेंद्र रावत
8।08।2017