क्या मेरा यही कसूर है
तू लिपट रही थी मुझसे लता की तरहां,
बेखबर होकर दुनिया की आँखों से,
मैंने अपने तन से हटाकर तुम अलग कर दिया,
इसलिए कि तू जले नहीं मोहब्बत की अग्नि में,
क्या मेरा यही कसूर है ?
मुझको पसंद नहीं थी तेरी वह आदत,
मेरी बात सुने बिना मुझसे गुस्सा होना,
मुझसे पेश आना तेरा एक दुश्मन की भांति,
इसलिए तुमको फटकार दिया मैंने गुस्से में,
क्या मेरा यही कसूर है ?
मैं तुमको बताना चाहता था कि सच क्या है,
लोगों के तुम्हारे खिलाफ साजिश क्या है,
तू इससे नावाकिफ थी कि मैं क्या हूँ ,
इसलिए मैंने तुमको दिया लिखकर खत,
क्या मेरा यही कसूर है।
तू बहके नहीं अपनी मंजिल से,
देखकर दुनिया का झूठा श्रृंगार,
इसलिए तुमको दी मैंने सलाह,
क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता था,
क्या यही मेरा कसूर है।
तू रहे हमेशा खुशहाल जीवन में,
नही झुके तुम्हारा सिर गलत के सामने,
भविष्य में सुख की कोई कमी नहीं हो,
देखा ऐसा ख्वाब मैंने तुम्हारे लिए,
क्या मेरा यही कसूर है।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी. आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)