क्या मिलेगा
पत्थरों पर सिर पटककर क्या मिलेगा
बेसुध पड़े लोगों से तुमको क्या मिलेगा
ज़िंदगी जीवित भी है या मर चुकी
दूसरों को यह बताकर क्या मिलेगा?
मिल गये दीवार तुमको चार जब अंदर रहो
बेवजह बाहर निकलकर क्या मिलेगा
रोटियाँ तो घर के अंदर ही पकेंगी
सड़क पर यूँ ही भटककर क्या मिलेगा?
गुनगुनाओ गीत कुछ झूमो जरा
प्रीत की गंगा हृदय में आ बसेगी
भावनाओं की यहाँ लगती है बोली
अश्रु की गंगा बहाकर क्या मिलेगा?
इस जगत में अकड़कर जीना ही होगा
लोग की बातें तो बस बातें रहेंगी
अपनी धुन में मस्त रहकर गीत गाओ
मुस्कुराओ यार मेरे सब मिलेगा।
मुस्कुराओ यार मेरे सब मिलेगा।
–अनिल मिश्र,’अनिरुध्द’