“किसी को क्या मिला-बिना प्रेम”
अब्र^ पर है,
रोशनी दिखाई दी,
शुद्ध देह को ।।1।।
^बादल
देह को जानो,
उसमें सुन्दर जो,
हृदय पथ ।।2।।
उस पथ में,
चलता राहगीर है,
जो वहीं स्थिर।।3।।
स्थिर है जिसे,
अनन्त की पुकार,
सुनाई पड़ी ।।4।।
‘किटिक’ जैसी,
आवाज़ आई भाल,
में जो विशेष ।।5।।
विशेष ध्वनि,
तुम भी,मैं भी,सुनूँ,
ध्यान रखो ये ।।6।।
यही अद्भुत,
चोट कभी कभी यूँ,
तुम भी सुनो ।।7।।
पर्याय, बल,
भिन्न भिन्न सभी में,
देखो सुनो रे।।8।।
यही जगत,
का आश्रय अशेष,
चिन्तन करो ।।9।।
क्या मिला है,
किसी को कभी देश,
में बिना प्रेम।।10।।
©अभिषेक पाराशर???