क्या मजहब के इशारे का
क्या मजहब के इशारे का
तुम इंतजार करोगे।
तुम जिंदा हो इस जहां में
कब एहसास करोगे ।।
कौन है वो गुस्ताख़
जो इशारे से आता है ।
फूलों को चुपके से
वो महका जाता है ।।
आज तक पता न चला
दिल चोर कहां है ।
चोरी तो सब कर रहे
पर वो कहां है।।
समंदर की गहराइयों में देखो
आसमां की हवाईयों में देखो ।
दरिया, पर्वत, नदियों या व्योम है
कफन से पूछो आज अंदर कौन है ।।