— क्या भरोसा जिंदगी का —
क्या भरोसा है इस जिंदगी का
साथ देती नहीं है किसी का
चलता है राही जब भी सकून से
रास्ता रोक लेती है ये उसी का !!
नहीं कर पाता है वो अपनी मनमानी
सर चढ़ के बोलती है इस की जवानी
कितनी भी आगे बढ़ना वो चाहे
बंधन में बांध लेती है इस की रवानी !!
चाहनें और सोचने से पहले ये उस प्राणी के
कांटे बो देती है करती है अपनी मनमानी
चलायेगी और सब को नचायेगी अपनी ऊँगली पे
जीने देती नहीं यह कभी किसी को !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ