क्या बन जाओगे तुम
अब बिगड़ी सुधार कर क्या बन जाओगे तुम ।
बेवफ़ा हो बेवफ़ा ही कहलाओगे तुम ।।
ना आएगा परिंदा झूठ के झांसे में ।
डालते डालते दाना थक जाओगे तुम ।।
कोई राब्ता नहीं तुझसे न कुरबत कोई ।
मेरी सुनोगे या अपनी सुनाओगे तुम ।।
अब नहीं चलती यहाँ हुस्न की चालाकियाँ ।
शहर आए तो कंगाल हो जाओगे तुम ।।
कहाँ सीख आए दूसरों के घर जलाना।
किसी का उजाड़ कर खुद का बसाओगे तुम ।।
ख्वाहिश थी साहिल तक ले जाने की ‘सागर’।
किसे खबर बीच रास्ते बदल जाओगे तुम ।।
सागर