क्या बचपन था,
कविता
( क्या बचपन था )
कहाँ गये वो बचपन के दिन,
जिन गलियों में हम खेले थे,
जाते कहीं हम गली गली में
सोर मचाते खेले थे,
पाठ शाला जब हम जाते
पाटी बरती से खेले थे,
वापिस आये जब हम घर पर
टोली बनाकर खेले थे,
खेत पर जाते हम बैर खाने
कई टोलियों के रैले थे,
वो बचपन हमें याद आये
जब हम हाथ पकड़ खेले थे,
खेल खेल होती लड़ाई
उटि कुटि बोलते थे,
जब हम जाते मेलें देखने
खुशियों के कुछ पैसे साथ में खिलौने थे,
जब छुट्टी मिलती थी रविवार की
वही त्यौहार और मेले थे,
अब काबिल होकर पता चला हैं
क्या बचपन के वो मेले थे,
क्या हो गया इस युग को अब
सुविधा बड़ी और अब हम अकेले हैं,
कितनी अजब ये बात सुनाऐं
क्या बचपन के वो रैले थे,
कहाँ गये वो बचपन के दिन,
जिन गलियों में हम खेले थे,
जाते कहीं हम गली गली में
सोर मचाते खेले थे,||
लेखक— Jayvind singh nagariya ji