क्या फ़र्क अब आदमी और लाश में?
फ़र्क अब आदमी और लाश में?
बेदम सुधीरा फिर रहा है नूर की तलाश में।
तन पे केवल अब बचे हैं माँस ही के लोथड़े
ढूंढे होटल का पता फिर माँस ही की तलाश में।
ऐसा होता, वैसा होता, सोच में केवल यही
ज़िन्दगी को बिता रहा है, अब तो केवल काश में।
जो भी कुछ हम खा रहे, सब का सब बेदम भरा
खा के भी कोई महक ना, आ रही अब साँस में।
चुगलियां चलती हैं चौपालों में दिनभर आजकल
बाज़ी चुगली पर लगी, कोई बाज़ी ना अब ताश पे
पहले मुहब्बत हो गई फिर बेवफ़ाई आ गई
कब तलक आख़िर रुके फिर बात पहुंचे नाश पे।
मज़दूर की मज़दूरी खाई, ज़ुल्म की है दास्ताँ
बेरहम मालिक, दया ना आए कोई दास पे।