क्या प्रीत निभाओगे तब भी अपने बचपन की
जब तुम होंगे साठ बरस के और हम पचपन की
क्या तब भी प्रीत निभाओगे अपने बचपन की
योवन ये ढल जाएगा खाली मन भी रोएगा
होगी जरूरत लाठी की पर क्या
तेरी मेरी बाहों का सहारा मिल जाएगा ?
जब तुम होंगे साठ बरस के और हम पचपन की
क्या तब भी प्रीत निभाओगे अपने बचपन की
काया पड़ जाएगी पीली आंखें भी ना रहेंगी नीली
होगी जरूरत मीठी यादों की
क्या तब भी बांधोगे गुलाबों के सेतु
तुम्हारी मृगनयनी प्रेमाबंधन हेतु ?
जब तुम होंगे साठ बरस के और हम पचपन की
क्या तब भी प्रीत निभाओगे अपने बचपन की
नैया जीवन की डगमग डगमग होगी
दिए की ज्योति जल बुझ , जल बुझ होगी
गर तुम से पहले साथ छोड़ दिया हमने तुम्हारा
क्या तब भी निस्वार्थ अटल प्रेम विश्वास रहेगा हमारा ?
जब तुम होंगे साठ बरस के और हम पचपन की
क्या तब भी प्रीत निभाओगे अपनी बचपन की
रचनाकार मंगला केवट होशंगाबाद मध्य प्रदेश