क्या प्रात है !
क्या प्रात है, क्या प्रात है!
सुहावना प्रभात है ।
निर्मल छटा आकाश की,
शीतल सुखद सी वात है ।
संगीत सा घोले हवा में,
विहग वृन्दों का ये कलरव ।
भक्ति से सराबोर करता,
कानों में श्रुतियों का आरव ।
आज का सुप्रभात ये
उर में संजोना चाहती हॅू ।
रात्रि का जो तम हरे
माणिक पिरोना चाहती हूं ।
शीतल सुखद इस वात से
सुरभित हो मन उपवन सदा |
सार श्रुतियों का मिले
प्रेरित हो चिन्तन सर्वदा ।