— क्या पेश करूँ —
मिल जाय जो अल्फाज तो
मैं सब कुछ पेश करूँ
हो जाए जब शब्दों से बात
तो ही तो कुछ पेश करूँ
खोजता हूँ इनको
न जाने कौन से गुल्दासों में
जब बन जाए यह नायाब
तभी तो मैं इन्हें पेश करूँ
मिठास से भरे हो
कडवाहट से यह परे हों
जिस में सजों जाएँ वो जज्बात
वो मखमली सा आभास
आ जाये उनमे ,तभी तो पेश करूँ
पढूं और उस में खो जाऊं
संग संग सब के खो जाऊं
आप सब का आये जाए उस में प्यार
तभी तो अजीत उस को पेश करूँ
अजीत कुमार तलवार
मेरठ