क्या देखूँ
कहीं गुजरे वक्त के निशां देखूँ ।
कहीं जाते हुए लम्हों के निशां देखूँ ।
अपनी दीवानगी में क्या देखूँ !
उम्मीद गिर गिर के उठती है ।
तिश्नगी बढ़ती है न घटती है।
तेरा किरदार है फ़लक से ऊंचा
नज़रें उठाकर क्या देखूँ ?
कहीं गुजरे वक्त के निशां देखूँ ।
कहीं जाते हुए लम्हों के निशां देखूँ ।
अपनी दीवानगी में क्या देखूँ !
उम्मीद गिर गिर के उठती है ।
तिश्नगी बढ़ती है न घटती है।
तेरा किरदार है फ़लक से ऊंचा
नज़रें उठाकर क्या देखूँ ?