Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Feb 2024 · 1 min read

*क्या देखते हो*

डॉ अरुण कुमार शास्त्री
शीर्षक -*क्या देखते हो *

उम्र के आखरी पड़ाव में हूँ ।
बस्ती से दूर सड़क पर खड़ा हूँ ।
कोई रहबर न साथी न कोई सहारा ।
नजर फिर भी चाहे कोई कनारा ।

है धुंधली सी आशा हृदय में जगी ।
प्यास भी तो मुझको गजब की लगी ।
सुबह से हूँ निकला कमर थक गई ।
न गाड़ी न रिक्शा न कोई सवारी ।

शाम भी तो देखो अब ढलने चली ।
डगर अजनबी है राह सुनसान है ।
बुरा भूख से हाल मेरा अरे राम है ।
थक गया हूँ , काया दर्द से बेहाल है ।

प्रार्थना मन ही मन में मैं कर रहा ।
ओ भगवन अरज मेरी सुनो तो जरा ।
भेज दो कोई मददगार मेरा हाल हेगा बुरा ।
हिम्मत अब मेरी जबाब है देने लगी ।

कहीं गिर न जाऊँ कहीं मर न जाऊँ ।
परिवार से मैं अपने शायद बिछड़ ही न जाऊँ ।
बच्चे हैं मेरे मासूम एक दम अभी ।
ओ मालिक कर दो दया घुमा दो जादू की छड़ी ।

Language: Hindi
131 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from DR ARUN KUMAR SHASTRI
View all
You may also like:
जय जय दुर्गा माता
जय जय दुर्गा माता
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
घर
घर
Shashi Mahajan
गम इतने दिए जिंदगी ने
गम इतने दिए जिंदगी ने
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
*धन्य-धन्य वे जिनका जीवन सत्संगों में बीता (मुक्तक)*
*धन्य-धन्य वे जिनका जीवन सत्संगों में बीता (मुक्तक)*
Ravi Prakash
रमेशराज की कविता विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की कविता विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
जिस्म से रूह को लेने,
जिस्म से रूह को लेने,
Pramila sultan
माँ
माँ
Harminder Kaur
Thought
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
मिलता है...
मिलता है...
ओंकार मिश्र
मौन समझते हो
मौन समझते हो
मधुसूदन गौतम
मैने यह कब कहा की मेरी ही सुन।
मैने यह कब कहा की मेरी ही सुन।
Ashwini sharma
मुक्तक
मुक्तक
डॉक्टर रागिनी
********** आजादी के दोहे ************
********** आजादी के दोहे ************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
बढ़ी हैं दूरियाँ दिल की भले हम पास बैठे हों।
बढ़ी हैं दूरियाँ दिल की भले हम पास बैठे हों।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
शब्द
शब्द
Sûrëkhâ
ग़ज़ल _ कहाँ है वोह शायर, जो हदों में ही जकड़ जाये !
ग़ज़ल _ कहाँ है वोह शायर, जो हदों में ही जकड़ जाये !
Neelofar Khan
"" *वाङमयं तप उच्यते* '"
सुनीलानंद महंत
मां को शब्दों में बयां करना कहां तक हो पाएगा,
मां को शब्दों में बयां करना कहां तक हो पाएगा,
Preksha mehta
Bundeli doha -kurta
Bundeli doha -kurta
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
Mere papa
Mere papa
Aisha Mohan
कहानी
कहानी
Rajender Kumar Miraaj
मुश्किलें
मुश्किलें
Sonam Puneet Dubey
🙅अपडेट🙅
🙅अपडेट🙅
*प्रणय*
'बस! वो पल'
'बस! वो पल'
Rashmi Sanjay
हारने से पहले कोई हरा नहीं सकता
हारने से पहले कोई हरा नहीं सकता
कवि दीपक बवेजा
"साहिल"
Dr. Kishan tandon kranti
चलो जिंदगी का कारवां ले चलें
चलो जिंदगी का कारवां ले चलें
VINOD CHAUHAN
3903.💐 *पूर्णिका* 💐
3903.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
खडा खोड झाली म्हणून एक पान फाडल की नवकोर एक पान नाहक निखळून
खडा खोड झाली म्हणून एक पान फाडल की नवकोर एक पान नाहक निखळून
Sampada
कोरे कागज़ पर
कोरे कागज़ पर
हिमांशु Kulshrestha
Loading...