क्या तू वही काश्मीर है ?
क्या तू हमारा वही काश्मीर है ?
प्रश्न करते हुए दिल में उठती पीर है ।
हवाएं आज भी खुशनुमा, हसीन वादियां ,
मगर छुपी इसमें किसी आह की जंजीर है ।
मिट्टी में है वही खुशबू सोंधी सोंधी सी,
और जब गौर किया तो दिखी खून की लकीर है ।
आधिपत्य जमाया तुझपर एक ही जाति ने ,
और तू देखता रहा यही तेरी फूटी तकदीर है ।
लहू लुहान किया घर से बाहर किया पंडितों को ,
तेरी ही संतान थे वोह भी ,कुछ गलती इसमें तेरी है ।
धरती का स्वर्ग कैसे कहें अब हम तुझे ,
तू बन गया नर्क की जीती जागती तस्वीर है ।
हमने तेरा गोशा गोशा देखा तुझे निहारा भी ,
मगर माफ करना विश्वास नहीं होता यह मेरे ,
वही कश्मीर की सुन्दर तस्वीर है।