क्या तुम्हें लगता है कि
क्या तुम्हें लगता है कि,
ईश्वर विद्यमान है,
हाँ, मुझको तो विश्वास नहीं है,
और मैं मानता भी नहीं हूँ ,
कि ईश्वर सर्वहितैषी है,
और मुझको तो आज तक जमीं पर,
नजर नहीं आया ईश्वर।
मैंने तो देखा है हर कहीं,
और तुमने भी देखा होगा,
इंसान ही लूट रहा है इंसान को,
धर्म के नाम पर ठग बनकर,
क्या मौजूद है इंसान में ईमान,
क्या मौजूद है इंसान में इंसानियत।
अगर है तो दिखाई क्यों नहीं देती है।
दिखाई दे रही है हर कहीं,
लूटखसोट और ऐय्याशी,
दगाबाजी और चालाकी,
किसको शर्म है ईश्वर की,
जबकि वह तो पूजता है ईश्वर को,
और डराता है ईश्वर से दूसरे को।
कौन करता है सच्चे दिल से प्रार्थना,
वसुधैव कुटुम्बकम और सर्वजन हिताय की,
जबकि चाहता है हर कोई अपना भला ही,
अपने लिए ही धन- सम्पत्ति जोड़ना,
अपने लिए ही आशियाना बनाना,
कानून तोड़कर और खरीदकर,
ऐसे में कौन सोचता है औरों के लिए,
जीना और मरना इस धरती पर,
क्या तुम्हें लगता है कि——————।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)