‘ क्या गीत पुराने गा सकती हूँ?’
ये राह बदलकर फिर से अपनी
क्या वापिस पीछे जा सकती हूँ?
क्या गीत पुराने गा सकती हूँ?
था बरसों पहले चला गया जो
रिश्ते को माटी बना गया जो
जब लगा कि दुख में गयी मैं गिर
उसने मुड़ के भी ना देखा फिर
मैं पूछ रही हूँ उसी से देखो
क्या छोड़ तुम्हें मैं जा सकती हूँ?
क्या गीत पुराने गा सकती हूँ?
जब फूलों और चाँद- सितारों में
जब बारिश और सर्द बहारों में
कोई चेहरा नहीं झलकता था
ये मन उस बिन नहीं तरसता था
कितनी हसीं ये दुनिया थी तब
क्या फिर से वो रंग ला सकती हूँ?
क्या गीत पुराने गा सकती हूँ?
जब इश्क़ से मैं कतराती थी
और ख़ुद पे बड़ा इतराती थी
मेरे सुख दुख हँसना रोना सब
किसी और के कारण था ही कब
अब पूछती रहती हूँ ख़ुद से ही
मैं लौट के वापिस आ सकती हूँ?
क्या गीत पुराने गा सकती हूँ?
सुरेखा कादियान ‘सृजना