क्या गाएं तेरी महिमा
तुम समग्र सृष्टि निर्मात्री
सकल विश्व की स्नेह दात्री
हो तुम त्याग ममत्व की मूरत
नारी तुम हो धरा सी धीर
अविचल हो सुख दुःख में
तुम हो सागर सी गंभीर।
रूप है रजनी सम प्रशांत
विधु की शीतलता तुझमें
तू प्रकृति की कृति पुनीत
पुष्पों सी कोमलता तुझमें।
धैर्य असीम अचल वसुधा- सा
है तुझमें पर्वत-सी दृढ़ता
उर तेरा पावन पुनीत है
और है गंगा सी निर्मलता।
कर्णप्रिय मिश्री सी घुलती
वीणा की सी मधुर है वाणी
दया कृपा मयी करुणानिधि हो
तुम हो सकल विश्व कल्याणी ।
नारी तेरा रूप है मां का
जिसमें बसते हैं भगवान्।
तुम देती हो वह संस्कार
जो हमें बनाता है इंसान।
नारी तुम शीतल सरिता हो
जीवन के शुष्क मरुस्थल में।
यूं शांत भाव से बसी रहो
हर परिवार के हृदय स्थल में।
रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान)
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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