क्या खोया और पाया (31.12.2019)
आख़िर वह पल आया,
जिसने मन में उथल – पुथल मचाया,
यह सोचकर कि मैंने इस वर्ष क्या खोया और पाया।
खोया तो नहीं है कुछ,
पाया जरूर बताउँगी।
साथ जो मिला सभी का,
इसको न बिसराउँगी।
गठन हुआ मंच हिंदी विकास का,
अध्यक्ष बनी मैं मंच का,
सम्मान मिला अहसास हुआ।
इन सबमें हाथ रहा जिनका,
साथ न उनका छोड़ूँगी।
जब – जब वे याद करेंगे,
मैं पथ पर उनको पाऊँगी।
ख़ास मिला वह दोस्त मुझे,
शायद जिसकी तालाश थी।
विश्वास देकर लड़ना सिखाया,
शायद जिसकी हक़दार थी।
सोचा न था,
मिल पड़ेंगे क़दम इस तरह,
इसी क़दमों की तो तालाश थी।
दिया है इस वर्ष ने बहुत कुछ ख़ास,
जीवन के पथ पर बढ़ने का विश्वास।
क्या कुछ नहीं मिला मुझे,
जिसकी चाहत मैं रखती थी।