क्या खाक मजा है जीने में
क्या खाक मजा है जीने में
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कुछ दर्द छिपा है सीने में,
क्या खाक मज़ा है जीने में।
लाख कोशिश की कमाने की,
बहुत श्रम छिपा पसीने में।
हर चमकती चीज कनक नहीँ,
हीरा छुपा है नगीने में।
करता कोई परवाह नही,
सब लगे हैं जख्म सीने में।
खोये बैठे है सुध बुध सारे,
मस्त हैं लोग मय पीने में।
मनसीरत गम में गमगीन है,
क्या पड़ा बनने कमीने में।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)