– क्या खाक मजा है जीने में।।
मानसरोवर साहित्य काब्य मंच
दिनांक १६/४/२०२४
विषय, क्या खाक मजा है जीने में
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जिस डाल पर पानी सींचा
पाला पोसा बड़ा किया।
वक्त हमारी पारी आई तब
येन वक्त पर धोखा दिया।।
जिसको समझा अपना प्राण
वही व्यक्ति प्राण लिया।
जिस पर हो कुर्बान जीवन में
वही शख्स कुर्बानी लिया।
कैसी ज़िन्दगी कैसी खुशी
कैसी मजा है जीने में।
जिनके खुशी मैंने चाहा था
खुब दर्द दिया है सीने में।।
चहुं ओर अंधेरा लगता है अब
क्या खाक मजा है जीने में।
मिलता है पेंशन अब भी हमें
काक बगुले लगे हैं छिनने में।
घर की पत्नी बच्चे रिस्ते अब,
दिल से पराया सा लगते हैं।
इस असहाय बुढ़े का अब
कोंई ना सहारा मिलते हैं।।।
मौलिक स्वरचित रचना
डॉ विजय कुमार कन्नौजे अमोदी आरंग ज़िला रायपुर छ ग
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