क्या ख़ाक खुशी मिलती है मतलबी ज़माने से,
क्या ख़ाक खुशी मिलती है मतलबी ज़माने से,
तस्सली यूं मिल जाती है ज़रा सा मुस्कराने से,
कभी रो लेता हूं तो कभी हँस लेता हूं अकेले में,
आंखों से थोड़े अश्क भी यूं छलकते हैं बहाने से,
जी बहलाने को और भी क्या चीज़ है दुनिया में,
अब यूं सुकून भी नहीं मिलता मुझे मयखाने से,
©️ डॉ. शशांक शर्मा “रईस”