क्या क्या हम भूल चुके है
अपनी सभ्यता को हम भूल चुके हैं,
पाश्चात्य सभ्यता को अपना चुके है।
विदेशी खान पान पर आ गए हम,
अपना खान पान हम भूल चुके है।।
दलिया खिचड़ी हम भूल गए है,
बर्गर पिज्जा पर हम आ गए है।
अपना रहन सहन हम भूल चुके हैं,
फ्लैट सोसायटी पर हम आ गए है।।
दालान आंगन अब कहां रह गए है,
बेड रूम ड्राइंग रूम में समा गए है।
फूल फुलवाड़ी बगीचे भूल गए है,
मिट्टी के गमलों में हम समा गए है।।
हिन्दी माध्यम को हम भूल गए है,
अंग्रेजी माध्यम पर हम आ गए है।
पहाड़े,गुना भाग जमा घटाना है कहां
टेबिल,प्लस माइनस पर आ गए है।।
चरण छूना भी हम अब भूल गए है,
नतमस्तक होना भी अब भूल गए है।
गुड मॉर्निंग गुड नाईट सीख लिया है,
प्रणाम नमस्ते कहना हम भूल गए है।।
प्याऊं छबील हम सब भूल गए हैं,
मिनरल वाटर पर हम आ गए है।
अपनो से अभिवादन करना भूल गए,
टाटा बाय बाय पर हम आ गए है।।
पानी कभी न मोल बिकता देखा,
अब हर जगह हमने बिकता देखा।
अब ये प्लास्टिक बोतलों में भर कर
सरे आम बाजार में बिकता देखा।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम