हर साँझ सुरमई है
हर भोर है सुहानी, हर साँझ सुरमयी है
जब से मिले हैं तुमसे, चेहरे पे हर ख़ुशी है
गुलशन में’ ही मगन है, चाहत नहीं गगन की
इक फूल से मुहब्बत, तितली को’ जो हुई है
कब से सुनी नहीं हैं, कोयल की’ मीठी’ बोली
हर डाल आम की अब, सबसे ये पूछती है
कालीन की जरूरत, मुझको नहीं यहाँ पर
आँगन की घास मेरी, उतनी ही मखमली है
इंसानियत अगर हो, हर आदमी के’ अन्दर
कोई नहीं पराया, कोई न अजनबी है
हर एक आदमी बस, ये सीख ले तो’ अच्छा
क्या क्या गलत यहाँ है, क्या क्या यहाँ सही है