क्या कहूँ बाकी क्या रहा मैं कल
क्या कहूँ बाकी क्या रहा मैं कल ।
बस तुम्हे देखता रहा मैं कल ।
खुद को तुझ में गुमा दिया मैंने ,
तुझ में और’ डूबता रहा मैं कल ।
बस तेरी याद की हुई बारिश ,
रात भर भीगता रहा मैं कल ।
एक तेरे फ़िराक़ से जानाँ ,
टूट जाता बारहा मैं कल ।
ख्वाब तक छीन ले गई मेरी ,
नींद में भी तन्हा रहा मैं कल ।
ईश्क़ भी इक अजीब जन्नत हैं ,
मर के, तुझ में बचा रहा मैं कल ।
उसके उम्मीदे दीद के खातिर,
बाम को ताकता रहा मैं कल ।