क्या करे
क्या करे—-
खुशी , कैसी खुशी अर्जित कर रहा था अखिल जो किसी के आंसुओं से लिखी है, जबरन किसी की जड़ो को काटने से मिली है।
सुमन देर तलक सोचती रही। अखिल को कुछ ही दिन हुये रिटायर हुये। ऐसा क्या हुआ कि अखिल को सुमन पर स्वाधिकार की कामना हो आई। सुमन से जुड़े सभी रिश्तो से नफरत ऐसे घर कर गई कि सुमन की तड़प उसके आंसूं भी उस लावे को ठंडा न कर पाई। पहना दी सुमन के पांव में बेड़ियां, सुन्न हो गया था सुमन का दिमाग।
असीमित प्यार को नफरत की खाई में गिरते देख रही थी पर असहाय। क्या करे कैसे संजो ले सब , सोच सोच हारती जा रही थी।
विरोध करे भी तो कैसे अखिल की ज़िद उस पर हावी थी , सब कुछ छोड़ने को तैयार था अखिल , उसकी सोच को समझ को जैसे लकवा मार गया था। किसी की सुनने को तैयार नहीं।
क्या करे सुमन, क्या छोड़ दे उसे अपने हाल पर या स्वीकार करले उसकी बनाई चाहरदीवारी को।