क्या करना
तुमको अधिकार दे,किया खुद को बंधक हमने
दम घुटता है मेरा पर तुमको भला क्या करना।
तेरी फितरत ही सनम बार-बार द़गा देना है
नहीं सुधरोगे, तुम्हें देकर सज़ा क्या करना।
इश्क की टूटी हुई कश्ती में खुद ही बैठे हम
पक्का डूबेगी,अब इसकी सदा(पुकार)क्या करना।
यही चाह है,मरकर ही सही, तुमको पा लूँ
नीलम माटी की देह-ए-क़बा(परिधान)क्या करना।
तू ही धड़कन है,नीलम साँस है जीवन जीने के लिए
बिन तेरे सुखद बाद-ए-सबा(सवेरे की हवा) क्या करना।
नीलम शर्मा ✍️