क्या कठिन था ?
दूर रह कर देख लिया तुमने, क्या ज्यादा कठिन था ?
प्रेम या घृणा, संयोग या वियोग
वियोग महज रस उत्तपति रही
कठिनता का पर्याय तो प्रेम ही रहा
कहाँ सहज है किसी में खो जाना, बिना शर्त इकसार हो जाना, एक आत्मा को आत्मसात कर लेना खुद में,
उसकी ख़ुशी में खुश होना, उसके दुःख में रोना,
उसकी विरह में जलना, उसके मिलन में तपना
उसकी जमीन उसका आसमान हो जाना
धरती का आकाश हो जाना
कभी उसकी सुबह तो कभी उसकी शाम हो जाना
हो जाना घुलनशीन नमक और चीनी की तरह
उसकी ज़िंदगी में घुलना और चाशनी हो जाना
उसकी हंसी में फना हो जाना, उसकी जान हो जाना
अभिमान हो जाना,कहाँ सहज है प्रेम का प्रतिरूप बन जाना
प्रेम में जीवन और मृत्यु बन जाना ……