क्या !! अलग है मेरी जिस्म में !!
क्यूं ??
क्या कुछ खास देखा मुझ में,
जो इतना आकर्षित हो
क्या है मुझ में ऐसा
जो तुम इतने व्याकुल हो !!
वही जिस्म है,
जो तुमको दिया ऊपर वाले ने
वोही खाल है, जो तुमको दिया
तुम्हारी माँ ने !!
यह पल भर का आकर्षण
धूमिल हो जाना है
न कर घमंड इस काया पर
इस को जमीन में मिल जाना है !!
देख जरा ,
खुद के घर में, कुछ अलग है क्या मुझ में
वो ही हाथ, वो ही पैर, वो ही आँख
वही बदन,
फिर क्यूं रख रखा कुछ अलग तुमने दिल में !!
सुना होगा खूब !!
काया का गुमान न कर
कितने आये रांझे और हीरेन
सब मिल गए हैं इस मिटटी में !!
फिर क्यूं रखता अरमान तू अपने चलन में !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ