कौवा( गीतिका )
कौवा( गीतिका )
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
(1)
इसे कहते हैं सच्चा हौसला दिखला गया कौवा
गजल प्रतियोगिता में देखो गाने आ गया कौवा
(2)
हुई सौंदर्य की प्रतियोगिता में भाग्य तो देखो
प्रथम सुस्थान सब पशु- पक्षियों में पा गया कौवा
(3)
दिवंगत आत्माओं को नमन करने का
अवसर था
प्रतीकों में ढला तो हर जगह पर छा गया कौवा
(4)
कभी दो-चार दिन कोयल कबूतर तोता दिखते हैं
रोजाना मित्रता में नाम को लिखवा गया कौवा
(5)
बचा जो दे दिया हमने कभी रोटी डबलरोटी
बड़ी आत्मीयता से उसको आकर खा गया कौवा
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
रचयिता :रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997 61 5451