कौरव सभा
था सभा मे सन्नाटा, सब थे खड़े माैन,
आकर नारी की बचाये लाज काैन,
कर्ण विकर्ण दाेनाे कर रहे थे विराेध,
पाण्डवाे मे जाग उठा था भारी क्राेध,
दुःशासन का दुःसाहस देखाे किया चीर हरण,
कृष्णा का मान बचाने आ गये सखा कृष्ण,
थककर चूर हुआ,अभिमानी गिरा धरा पर,
भीष्म, द्राेण, विदुर सबकी आंखाे में थे आँसू झुके थे सर,
काैरवाे के वंश मे, काैरवाे ने यह कैसा खेल रचाया,
एक चाैसर के खेल में नारी काे लजाया,
गंगा की धारा काे बाणाे से राेकने वाले कहां गया तेरा तेज,
कैसी तेरी प्रतिज्ञा, माैन के बदले मिलेगी तुमकाे बाणाे की सेज,
ओ भारद्वाज सुत, नही काेई बंधन भीष्म जैसा तुम पर,
लगता तुमकाे अपना सुत प्यारा, क्याे नही आया स्नेह मित्र सुता पर,
ओ आर्यवृत्त के अतुलित बाहु बलधारी, क्याे नही सुत काे टाेका,
धर्म पर भी तुमने आज पट्टी बांधी, राेक सकते थे पर नही राेका,
तुम धैर्यवान इस काैरव साम्राज्य के महामंत्री, कहां गई तुम्हारी नीति,
तुमसे न बड़ा काेई नीति मे, कहां गई तुम्हारी राजनीति,
तुम हाे दानवीर, महावीर, कहां गयी परशुराम की शिक्षा,
एक उपकार के बदले , बन गये भागी पाप के, कहां गयी दीक्षा,
कुल गुरु का दंभ भरने वाले क्याे हाे माैन आज,
जीह्वा से नही फूट रहे शब्द, सिर झुकाये खड़े हाे गुरु राज,
काैरवाे के वंश मे, गांधारी के अंश से कैसा हुआ ये शैतान,
भाई से भाई टकरायेंगे, समर मे मिलेंगे अब सीना तान,
।।।जेपीएल।।।