कौमी एकता बनाम सांप्रदायिकता
लड़ो लड़ कर मर जाओ,अपने धर्म के लिए।
कटो कटकर बंट जाओ,कट्टर कर्म के लिए।
पर याद रखो मरने-मारने वालो,
धर्म हित जीवन गुजारने वालों।
इससे फायदा ना तुम्हारा होगा,
ना हीं हिंदुस्तान का होगा।
लाभ ना कोई इंसान का होगा,
ना हिन्दू-मुसलमान का होगा ।
चिताओं पर तुम्हारे रोटियां सेंकने,
तैयार हैं अपनी दुकान चलाने वाले।
कब्र पर भी इंतजार कर रहे हैं,
तुम्हारे कंकालों से मकान बनाने वाले।
हर ज्ञानी धर्म का ज्ञान बांट रहा है,
मुल्ला जमातों में कुरान बांट रहा है।
कोई फतवा जारी तो कोई ऐलान कर रहा है,
इंसानी मूल्यों को, खुद से अंजान कर रहा है।
नफ़रत का पैगाम , हर इंसान बांट रहा है,
देश को कट्टर हिन्दू ,कट्टर मुसलमान बांट रहा है,
रो रहा होगा, खुद अब इंसान बनाने वाला,
विविधताओं से सजा यह जहान बनाने वाला।
स्वर्ग में भी तुम्हारी मूर्खता पर हंस रहा होगा,
‘अमन’ से भरा आजाद हिंदुस्तान बनाने वाला।