कौन सुने !
सब ही अपनी कहते हैं यहाँ।
कोई किसी को नहीं सुनता।
आवाज दब गयी मेरी
चीखा चिल्लाया मैं भी था ।
औरों के मसले कौन सुने ।
सबके अफसाने दर्द भरे यहाँ ।
सब ही अपनी कहते हैं यहाँ।
कोई किसी को नहीं सुनता।
आवाज दब गयी मेरी
चीखा चिल्लाया मैं भी था ।
औरों के मसले कौन सुने ।
सबके अफसाने दर्द भरे यहाँ ।