कौन समझेगा
ग़म न मिले तो ख़ुशी की क़ीमत कौन समझेगा
दर्द न मिले तो दवा की ज़रूरत कौन समझेगा
कोई एक गाल पे मारे तो दूजा गाल भी दे दो
भला इस दौर में इतनी शराफ़त कौन समझेगा
दौलतो शोहरत से होते हैं रिश्तों के सौदे यहाँ
मेरे अदना से दिल की मोहब्बत कौन समझेगा
ये सरहदों पे होती जंग तो समझ आती है ‘अर्श’
मगर घर घर में छिड़ी महाभारत कौन समझेगा