****कौन भला विश्वास करेगा****
निम्नवत पहले दो पदों में मासूम गोल कपोल बच्चे प्रद्युम्न के लिए, जिसे जाने क्यों अकारण मार दिया जाता है। (उस अबोध को भावभरी श्रद्धांजलि) इस सन्देश के साथ कि अपने बच्चों पर पैनी नज़र रखे कि वह कैसे लोगों की संगति प्राप्त कर रहा है साथ ही उनके स्वभाव में कहीं कोई परिवर्तन तो नहीं हो रहा है तो उसे प्यार दुलार और मित्रवत ढंग से उससे पूछते रहें। और कविता का आनन्द लें।
मानवता क्यों सिमटी ऐसी?,तीव्र वेदना उठी हृदय से,
भोला बचपन न बच पाया, मानुष के इस कपटी मन से,
कपटी मन की करतूतों ने, खो डाला ईमान धरा पर,
कौन भला विश्वास करेगा, कितना रख लो सत्य यहाँ पर ॥1॥
भोले बचपन को नहीं बख्शा, ऐसे क्यों विचार उगे हैं ?
तर्क करो अपने मन में,क्या हम निज संस्कृति से भटक गए है,
संस्कृति के पन्नों को पलटिए, खो डाला ईमान धरा पर,
कौन भला विश्वास करेगा, कितना रख लो सत्य यहाँ पर ॥2॥
ज्ञानवान है मानव मन और तन भी दुर्लभ कहलाता है,
शिक्षा के इस बेहतर युग में, निरा मूढ क्यों बन जाता है,
ऐसी शिक्षा ने अनपढ़ करके, खो डाला ईमान धरा पर,
कौन भला विश्वास करेगा, कितना रख लो सत्य यहाँ पर ॥3॥
जाति पाँति ने आग लगाकर, कमजोर बना डाला समाज को,
बचा खुचा इस राजनीति ने, नीच सिखा डाला समाज को,
राजनीति ने रूप बदलकर, खो डाला ईमान धरा पर,
कौन भला विश्वास करेगा, कितना रख लो सत्य यहाँ पर॥4॥
धर्म के ठेकेदारों ने, परिवर्तित कर डाला रूप धर्म का,
ज्ञान नहीं क ख ग का भी, उपदेश बताते वह मर्म का,
अधर्मियों के कारण धर्मियों ने भी,खो डाला ईमान धरा पर,
कौन भला विश्वास करेगा, कितना रख लो सत्य यहाँ पर॥5॥
(पद क्रमांक-5 में अधर्मियों के कारण धर्मियों पर भी उँगली उठना शुरू हो गई है।)
##अभिषेक पाराशर ##