कौन थाम लेता है ?
जब भी मैं गिरता हूँ तो न जाने कौन थाम लेता है ?
देखूं उसे तो आँखों से ओझल होकर चल देता है I
प्यार की पतंग मेरी आसमान में दूर उड़ती जाए,
गुलशन में सतरंगी निशानियां छोड़ती चली जाए,
लाख कोशिश करे पर मेरी पतंग पकड़ न पाए,
नदी – पहाड़ो को पार करके दूर बढती ही जाए I
जब भी मैं गिरता हूँ तो न जाने कौन थाम लेता है ?
देखूं उसे तो आँखों से ओझल होकर चल देता है I
मेरे मांझी, तेरी नैय्या पर सवार होकर चलते गए,
तेरे प्यार की पतवार के सहारे सागर में बढते गए,
तूफ़ान-बारिश के थपेड़ो से सागर में बचते गए,
तेरे एक प्यार की नज़र से गिरकर भी उठते गए I
जब भी मैं गिरता हूँ तो न जाने कौन थाम लेता है ?
देखूं उसे तो आँखों से ओझल होकर चल देता है I
ज़माना कुछ भी कहे, पिया तुझसे मोहब्बत करेंगे,
ताउम्र तक, तेरे प्यार की मूरत की इबादत करेंगे,
“राज”अपने देश जाने से पहले एक इबारत लिखेंगे,
“प्रेम” से बढकर कोई मजहब नहीं कहकर चल देंगे I
जब भी मैं गिरता हूँ तो न जाने कौन थाम लेता है ?
देखूं उसे तो आँखों से ओझल होकर चल देता है I
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देशराज “राज”
कानपुर I