कौन कहता है अम्माँ बूढ़ी हो गई हैं ?
कौन कहता है अम्माँ बूढ़ी हो गई हैं
क्या अम्माँ कभी बूढ़ी हो सकती है ?
आज अम्माँ कैसी हैं
जैसी मेरे बचपन में थीं वैसी हैं ,
तन मन से मजबूत चट्टान सी खड़ी हैं
अपने उसूलों पर आज भी अड़ी हैं ,
अम्माँ हैं तो नही है परेशानी का पल
निकाल ही लेंगी वो हर मुश्किल का हल ,
पता नही इतनी हिम्मत कहाँ से लाती हैं
अपनी ज़िंदादिली से अच्छे अच्छों को हैरान कर जातीं हैं ,
शरीर पर पड़ी झुर्रियों से कुछ नही होता है
बालों के सफेद होने से भी कुछ नही होता है ,
जैसी वो थीं मेरे बचपन में आज भी वैसी ही जस की तस हैं
फुर्ति से फड़कती उनकी नस नस है ,
आजकल कभी थक जाती हैं कभी गिर जाती हैं
कभी अस्थमा उभरता है तो कभी बीमार पड़ जाती हैं ,
तो क्या आज भी उनकी याददाश्त ही उनकी बुनियाद है
सारी तारीखें सिलसिलेवार आज भी मुज़बानी याद हैं ,
कोई समाचार उनसे छूट नही सकता
कोई भी झूठ उनसे छुप नहीं सकता ,
साल – दर – साल बीतते जायेंगे
अम्माँ से वो यूँ हीं घबराते जायेंगे ,
मज़ाल है जो अम्माँ को वो छू भी लें
हाँ वो बात अलग है की वो खुद
अम्माँ की ज़िंदादिली से कुछ सीख ही लें ,
सदियाँ बीत जायेंगीं
मेरी अम्माँ से हार जायेंगीं ,
मैं भी समय के साथ बूढ़ी हो जाऊँगीं
लेकिन उनको कभी हरा नही पाऊँगीं ,
क्योंकि मैं हराना नही हारना चाहती हूँ
अम्माँँ को यूँ ही जवान देखना चाहती हूँ ,
उन सब की मति मारी गई है
जो कहते हैं अम्माँँ अब बूढ़ी हो चली हैंं
आओ देखो उनको क़रीब से
इस उम्र में भी बच्चों सी नाज़ुक मिश्री की डली हैं ,
ज़रा जोर से पकड़ो तो नील पड़ जाता है
थोड़ा हट कर खा लें तो छाला पड़ जाता है
जिस बात को ठान लें कर के ही दम लेती हैं
उनके आगे तो भगवान को भी झुकना पड़ जाता है ,
हमारे जीवन का आधार
कैसे बूढ़ा हो सकता है ?
हमारे जीवन का सार
कभी बूढ़ा हो सकता है ?
इसिलिए तो प्रश्न भी मेरा है
क्या अम्माँ कभी बूढ़ी हो सकती हैं ?
और उत्तर भी मेरा ही है
नही अम्माँ कभी बूढ़ी नही हो सकती हैं ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 26/02/2020 )