कौन कहता कि स्वाधीन निज देश है?
कौन कहता कि स्वाधीन निज देश है?
कोख पर नग्नता नाचती ठेश है ।
बद् कुपोषण-अशिक्षा का अंधा चलन।
सह रहा अब भी नर,व्याधि-पीड़ा -जलन।
बढ़ रहा, भ्रष्टतारूपी मल-बदचलन।
हाय ! क्षरती मनुजता दिखे, क्लेश है ।
कौन कहता कि स्वाधीन निज देश है ?
सिसकियाँ पायीं, भोजन नहीं पेट पर।
युवतियाँ बिक रहीं, दोष किसका रे नर ।
बन गए हम,शवों का उभरता नगर।
जन्म धरती वृथा ग्लानि-परिवेश है।
कौन कहता कि स्वाधीन निज देश है?
दिव्य सत् को ही कम कर रहे आप-हम।
मैला संसार ढो ,जर रहे आप-हम।
नाव अवगुण की खे, डर रहे आप-हम।
मर गई चेतना, द्वंद-गम शेष है।
कौेन कहता कि स्वाधीन निज देश है?
जागरण का जो नायक है, वह ईश है।
बोध बिन ही तो जन,हीनता -शीष है।
आचरण का जो दीपक है, वह बीस है।
सोया तो डूबती नाव-सम रेष है।
कौन कहता कि स्वाधीन निज देश है?
कोख पर नग्नता नाचती ठेस है।
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कोख=गर्भाशय
रेष=क्षति,हानि
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●उक्त रचना को “पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाएं” कृति के द्वितीय संस्करण के अनुसार परिष्कृत किया गया है।
●”पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाएं” कृति का द्वितीय संस्करण अमेजोन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
उक्त रचना /गीत ,जे एम डी पब्लिकेशन नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2016 में प्रकाशित कृति/संकलन “भारत के प्रतिभाशाली हिंदी रचनाकार” में प्रकाशित हो चुकी/चुका है।
पं बृजेश कुमार नायक