कौन अरबी फ़ारसी पढ़ कर कभी शायर हुआ
कौन अरबी फ़ारसी पढ़कर कभी शायर हुआ
इश्क़ ने जिसको रुलाया बस वही शायर हुआ
आज भी उन गेसुओं में है गुलाबों की महक
काट कर साये में जिनकी जिन्दगी शायर हुआ
हो गया जिस रोज़ उनका वस्ल मुझको ख़्वाब में
छा गई मुझ पर उसी दिन बेखुदी शायर हुआ
हर्फ़ केसर जाफ़रानी सी ग़ज़ल महके न जो
फिर ज़माने के लिये तू ख़ाक ही शायर हुआ
यूँ तुनक कर बैठ जाना बज़्म में अच्छा नहीं
मान मत ऐसे बुरा तू तो अभी शायर हुआ
कल किताबों में पढ़ेंगे लोग तेरी दास्तां
तब कहेंगे वाह गुलशन क्या सही शायर हुआ
राकेश दुबे “गुलशन”
20/07/2016
बरेली