कोहिनूर
मिलते हैं दोस्त बचपन के नई शुरुआत होती है
हर किसी के भाग्य में ऐसे हालात नहीं मिलते
साथ यारों के हमेशा कुछ इस तरह मसरूफ रहे हम
यार जिंदगी में ऐसे हर किसी को नहीं मिलते
पता नहीं चलता कैसे दिन गुजरते और रात होती थी
वे दौर बचपन के हर शख्स को नहीं मिलते
वह दिन भी क्या दिन थे जब करते थे मटरगश्ती
अब तो मिलने में भी यारों के मिजाज नहीं मिलते
शाम होते ही बदहवास से निकल जाते थे घरों से
अब तो यारी दोस्ती के पैमाने ही नहीं मिलते
ना छल ना कपट ना दुनियादारी का भेद था
दोस्त उस दौर के शायद दोबारा नहीं मिलते
संभाल के रखा है आज मैने भी उन चंद हीरों को
संज्ञान था मुझे भी हर खदान में कोहिनूर नहीं मिलते
इंजी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश