कोहरा
कोहरा
सरपट जीवन
और
तीव्र गति से
भागते वाहन
अचानक एक विराम
द्रूतगति पर लगाम
वो सामने
सघन सी एक धुँध
नमी लिए कुछ बूंद
प्रकाश का कर अपहरण
बिछा है एक आवरण
ताकती आंखों की
दृष्टि मलिन
देखना उस पार
बहुत कठिन
परत बनकर
बादल है छाया
बूंदों में
मोह माया
लोभ समाया
एक सर्द छुअन
उभारती संवेदन
असंवेदी मन में
घना कोहरा
वातावरण में
एक और कोहरा
लोचन पे
बदलते मूल्य,बदलते अर्थ
दृष्टिगोचर नहीं यथार्थ
कड़क धूप से
ये कोहरा छंटेगा
नजरों का कोहरा पर
कैसे हटेगा?
-©नवल किशोर सिंह