कोहरा…..
लाखों दूर से पैदल चलकर,
आया मानों कोहरा |
यही उम्मीद लेकर की,
कल होगा कोई काम सुनहरा |
आज दुःख के बादल गिरकर,
बना हो जैसे कोहरा |
कल दुःख दूर करने फिर,
होगा कोई सबेरा |
उजयारें को ढक कर रखता,
जैसे उसका ही हो बसेरा |
कोहरा गिरता देख मानों,
उस पार हो किसका डेरा |
कुछ कदम दूर से देखो तो,
दिखता नहीं है चेहरा |
ऐ ज़िन्दगी भी ऐसी ही है मानों,
जैसे छाया हो घना कोहरा |
राहुल गनवीर