कोहरा
सर्द मौसम,
देता एक सन्देश है गहरा।
जीवन भी है,
जैसे सुबह का कोहरा।।
ना आगे कि,
कुछ खबर।
ना पता पीछे,
किसका है पहरा।।
आगे बढ़ते-बढ़ते,
मिट जाता पीछे का चेहरा।
सबकी अलग कहानी,
बयाँ करता ये सुबह का कोहरा।।
ओस की बूंदें,
गिला करती सबका चेहरा।
और छुपा देती मन के भाव,
क्या तेरा क्या मेरा।।
जिन बातो को बताने में,
संकोच में हूँ मैं ठहरा।
क्यूंकि,
ये शब्दों का घाव लगा है गहरा।।
जीवन में सबका,
मापने का पैमाना भी है दोहरा।
क्यूंकि जीवन है,
जैसे सुबह का कोहरा।।
डॉ. महेश कुमावत 27 दिसंबर 2023